तपाई हामी धेरैले शिव लिंगमा पुजा गरेका छौ, पुजा नगर्नेले पनि शिव लिङमा पुजा गरेको चाँही पक्कै देखेका छौ । साउन महिना सुरु हुदैछ, झन साउनमा शिवको महिमा बढी नै हुन्छ । साउने सोमवार, तीजजस्ता पर्वमा महिलाहरुले महत्वका साथ शिवको पुजा अर्चना गर्छन । मुलुकको आराध्यदेवका रुपमा पशुपतिनाथमा पनि शिवलिङमा नै पुजा गरिन्छ । तपाई हामी प्राय सबैलाई थाहा भयो कुरा यो हो कि शिवको कम र लिङको पुजा संसारभर बढी मात्रामा गरिन्छ । शिवको मन्दिरमा एउटा नन्दी (साँढे) र अर्को लिङ अनिवार्य नै मानिन्छन् र साथमा त्रिशुल र डमरु पनि शिवको हातमा रहेको देखिन्छ । हिन्दु धर्म शाष्त्रमा तेत्तिस कोटी देउता रहेका छन तर पनि सबैभन्दा बढी शिवको नै पुजा अर्चना हुन्छ किनकी देवहरुको देव महादेव हुन- शिव । एउटा हिन्दु धर्म भित्र हजारौं सम्प्रदाय छन. त्यति मात्रै होइन- शिवलाई मान्ने पनि बेग्लै बेग्लै सम्प्रदायहरु छन । हिन्दु धर्मालम्बी मध्ये कृष्ण प्रणामी (शुद्ध साकाहारी) सम्प्रदायले मुर्तीको पुजा गर्दैनन, उनीहरु मुस्लिम समुदायले जस्तै पुस्तक (बितक)को पुजा अर्चना गर्छन । तर, अरु सबै जसो हिन्दु देउताको मुर्ती पुजा हुन्छ तर शिवको चाँही लिङको पुजा गरिन्छ, किन ? त्यो धेरैलाई थाहा नहुन सक्छ । यो नियमित पुजा अर्चना गर्नेलाई मात्रै होइन, साउने सोमवारमा हरियो चुरा र कपडा लगाएर व्रत बस्ने तयारी गरिरहेका महिला सज्जनबृन्दलाई पनि थाहा नहुन सक्छ । त्यसैले आउनुहोस, शिवको भन्दा शिवलिङको पुजा किन गरिन्छ ? भन्ने रहस्यवारे जानकारी लिऊँ ।
शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार हैं । उनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार, वे निराकार हैं । आदि और अंत न होने से लिंग को शिवका निराकार रूप माना जाता है । जबकि उनके साकार रूप में उन्हे भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है । केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं । लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं । इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं ।
यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है । बिंदु शक्ति है और नाद शिव । यही सबका आधार है । बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है । बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि । यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है । 'शिव' का अर्थ है - 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ है - 'सृजन' । शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण । वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है ।
यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है । मन ,बुद्धि ,पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां व पांच वायु । आमतौर पर शिवलिंग को गलत अर्थों में लिया जाता है, जो कि अनुचित है या उचित यह हम नहीं जानते । वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं । इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है ।
पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं । केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है । लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है । शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग । शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है, शिवलिंग ।
शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा- आत्म-लिंग का द्योतक है । शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप । शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक । स्कन्दपुराण अनुसार आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है ।
शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष व प्रकृति का वर्चस्व है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । शिव पुराण अनुसार शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए । इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
हिन्दी टेक्स्ट, पञ्जावकेशरीवाट साभार
हिन्दी टेक्स्ट, पञ्जावकेशरीवाट साभार
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