यो तस्बिर बाहिर आए पछि मोदीको नांगिएका हुन, मेहत्ताको टिवटवाट |
भारतीय मिडियामा प्रोटोकल मिचेको भन्दै प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीको आलोचना भइरहेको बेला फेरी उनको अर्को 'बदमासी' सार्वजनिक भएको छ । भारतीयसहित नेपाली मिडियाले पनि महत्वका साथ प्रसारण र उल्लेख गरेका 'धर्मपुत्र' जीतबहादुरको सबाललाई लिएर मोदीको उछित्तो काटेका हुन । मोदीले भारतीय बायुसेनाको बिशेष बिमानवाट 'धर्मपुत्र' जीतबहादुरदाई आफुँसँगै ल्याएका थिए । ह्यात होटलमा उनको परिवारलाई भारतीय दुतावासले नवलपरासीवाट ल्याएको थियो । मोदीले जीतबहादुर मात्रै परिवारलाई सुम्पेनन, उनका परिवारलाई पनि उपहार भारतवाटै ल्याएका थिए । जुन एक 'सानो समारोह' बिच मोदीले जीतबहादुरलाई परिवारका सामु सुम्पे भने परिवारलाई उपहार । जसलाई नेपाली मिडियासहित भारतीय मिडियाले पनि महत्वका साथ प्रचार र प्रसारण गरेका थिए । तर, बिबिसीले भने मोदीले यो सब नौटंगी गरेको र उनले गरेका टिवट झुटा भएको भन्दै उछित्तो काटेको छ । बिबिसी अनलाइनले उल्लेखित बुदाँलाई समातेर लेखेको त्यो समाचारले के देखाउँछ भने मोदी मिडिया स्टन्ट गर्न एकदम सिपालु छन र त्यसको भरपुर प्रयोग गर्छन । जहाँ जहाँ उनी जान्छन, त्यहाँ त्यहाँ सोही अनुसारका भाषा र शैली प्रयोग गर्न सिपालु रहेछन भन्ने एक हदसम्म उदांगो पारेको छ ।
मोदीको टिवट र बिबिसी अनलाइनले लेखेको समाचार यहाँ जस्ताको तस्तै राखिएको छ । तपाई आफै पढन सक्नु हुन्छ कि मोदीले आखिर किन यस्तो काम गरे ? र बिबिसीले मोदीको आलोचना गरयो ।बिबिसीले त शिर्षक नै राखेको छ,– नरेन्द्र मोदीका दावेपर सबाल, जुन समाचार अहमदावादवाट अंकुर जैनले लेखेका हुन । बिबिसीले पहिला चाँही यो शिर्षक राखेको थियो– नरेन्द्र मोदी सच या जीतबहादुर ? सो बारेमा बिनोद मेहत्ताले पनि टिप्पणी गर्दै भनेका छन- Modi must refrain from faking stories, dose nt behold a PM.
मोदीको टिवट र बिबिसी अनलाइनले लेखेको समाचार यहाँ जस्ताको तस्तै राखिएको छ । तपाई आफै पढन सक्नु हुन्छ कि मोदीले आखिर किन यस्तो काम गरे ? र बिबिसीले मोदीको आलोचना गरयो ।बिबिसीले त शिर्षक नै राखेको छ,– नरेन्द्र मोदीका दावेपर सबाल, जुन समाचार अहमदावादवाट अंकुर जैनले लेखेका हुन । बिबिसीले पहिला चाँही यो शिर्षक राखेको थियो– नरेन्द्र मोदी सच या जीतबहादुर ? सो बारेमा बिनोद मेहत्ताले पनि टिप्पणी गर्दै भनेका छन- Modi must refrain from faking stories, dose nt behold a PM.
बिबिसीको समाचार शिर्षक- नरेन्द्र मोदीका दावेपर सबाल
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने ट्विटर एकाउंट के ज़रिए एक बिछड़े हुए नेपाली लड़के को उसके परिवार से 16 साल बाद मिलाने का दावा किया था. लेकिन सच तो ये है कि जीत बहादुर 2012 में ही अपने परिवार से मिल चुके थे.
इसका पता तब चला जब लोगों ने जीत के फ़ेसबुक पेज पर 2012 की उनके परिवार के साथ तस्वीरें देखीं.
खुद जीत बहादुर ने भी बीबीसी से बातचीत में मोदी के दावे के उलट बाते कहीं. उन्होंने कहा, "मैं अपने परिवार वालों से काफी बार मिल चुका हूँ लेकिन मेरे बड़े भाई (मोदी) पहली बार मेरे परिवार वालों से मिले हैं. वे चाहते थे कि वे खुद मुझे मेरे परिवार वालों को हैंड ओवर करें."
जीत बहादुर ने कहा, "नेपाल के एक बड़े बिज़नेसमैन बिनोद चौधरी 2011-12 में मोदी जी से मिलने आए थे. तब उन्होंने उनसे मेरे परिवार को ढूंढने की बात कही. जल्द ही मुझे मेरे परिवार का पता मिल गया."
जीत के मुताबिक़ वह परिवार के साथ तीन महीने रहकर अहमदाबाद लौटे और सीधे मोदी के घर गए.
हालाँकि मोदी ने नेपाल जाने से पहले ट्वीट किया था, "नेपाल की इस यात्रा से मेरी कुछ व्यक्तिगत भावनाएं भी जुड़ी हैं. बहुत वर्ष पहले एक छोटा सा बालक जीत बहादुर, असहाय अवस्था में मुझे मिला. उसे कुछ पता नहीं था, कहां जाना है, क्या करना है. और वह किसी को जानता भी नहीं था. भाषा भी ठीक से नहीं समझता था. कुछ समय पहले मैं उसके मां-पिताजी को भी खोजने में सफल हो गया. यह भी रोचक था. यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि उसके पांव में छह उंगलियां हैं. ईश्वर की प्रेरणा से मैंने उसके जीवन के बारे में चिंता शुरू की. धीरे-धीरे उसकी पढ़ाई-खेलने में रुचि बढ़ने लगी. वह गुजराती भाषा जानने लगा.'' मोदी ने अपने ट्वीट में ये भी लिखा, "कुछ समय पहले मैं उनके माँ-पिताजी को भी खोजने में सफल हो गया. मुझे ख़ुशी है कि कल मैं स्वयं उन्हें उनका बेटा सौंप सकूँगा." लेकिन जीत बहादुर के बयान के बाद इस दावे पर सवाल उठने लगे हैं.
इसका पता तब चला जब लोगों ने जीत के फ़ेसबुक पेज पर 2012 की उनके परिवार के साथ तस्वीरें देखीं.
खुद जीत बहादुर ने भी बीबीसी से बातचीत में मोदी के दावे के उलट बाते कहीं. उन्होंने कहा, "मैं अपने परिवार वालों से काफी बार मिल चुका हूँ लेकिन मेरे बड़े भाई (मोदी) पहली बार मेरे परिवार वालों से मिले हैं. वे चाहते थे कि वे खुद मुझे मेरे परिवार वालों को हैंड ओवर करें."
जीत बहादुर ने कहा, "नेपाल के एक बड़े बिज़नेसमैन बिनोद चौधरी 2011-12 में मोदी जी से मिलने आए थे. तब उन्होंने उनसे मेरे परिवार को ढूंढने की बात कही. जल्द ही मुझे मेरे परिवार का पता मिल गया."
जीत के मुताबिक़ वह परिवार के साथ तीन महीने रहकर अहमदाबाद लौटे और सीधे मोदी के घर गए.
हालाँकि मोदी ने नेपाल जाने से पहले ट्वीट किया था, "नेपाल की इस यात्रा से मेरी कुछ व्यक्तिगत भावनाएं भी जुड़ी हैं. बहुत वर्ष पहले एक छोटा सा बालक जीत बहादुर, असहाय अवस्था में मुझे मिला. उसे कुछ पता नहीं था, कहां जाना है, क्या करना है. और वह किसी को जानता भी नहीं था. भाषा भी ठीक से नहीं समझता था. कुछ समय पहले मैं उसके मां-पिताजी को भी खोजने में सफल हो गया. यह भी रोचक था. यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि उसके पांव में छह उंगलियां हैं. ईश्वर की प्रेरणा से मैंने उसके जीवन के बारे में चिंता शुरू की. धीरे-धीरे उसकी पढ़ाई-खेलने में रुचि बढ़ने लगी. वह गुजराती भाषा जानने लगा.'' मोदी ने अपने ट्वीट में ये भी लिखा, "कुछ समय पहले मैं उनके माँ-पिताजी को भी खोजने में सफल हो गया. मुझे ख़ुशी है कि कल मैं स्वयं उन्हें उनका बेटा सौंप सकूँगा." लेकिन जीत बहादुर के बयान के बाद इस दावे पर सवाल उठने लगे हैं.
भारतीय मिडियामा छायोः जीतबहादुर नेपाल आउँदा गरेको फेसबुक पोष्टको तस्बिर |
जीत इन दिनों वह अहमदाबाद के पास ढोलका में राय यूनिवर्सिटी से बीबीए कर रहे हैं. वे बताते हैं, "मैं 1998 से घर से निकल गया था. इतने साल बाद दोबारा उनसे मिलना एक सपने की तरह ही था और यह सब सिर्फ़ बड़े भैया की वजह से हुआ. मैं जैसे ही स्टेशन से उतरा, तो भैया ने मुझे घर बुलवा लिया और अगले दिन कहा कि उन्होंने मेरा दाखिला एक कॉलेज में बीबीए के लिए करवा दिया है. वह दिन मैं आज भी नहीं भूला."
जीत एक ग़लत ट्रेन पकड़कर राजस्थान से अहमदाबाद पहुंच गए थे. अहमदाबाद स्टेशन पर बीजेपी कार्यकर्ता अंजलीबेन उन्हें आरएसएस से जुडी संस्था लक्ष्मण ज्ञानपीठ ले गईं और वहां छात्रावास संस्कार धाम में दाखिल करा दिया.
एमबीए करने की इच्छा रखने वाले जीत कहते हैं, "मुझे बड़े भैया कैसे मिले, यह तो मैं नहीं बताऊंगा. लेकिन वे मेरा इतने समय से ध्यान रख रहे थे. जब मुझे मिलने की इच्छा होती, तो मैं उनके पास चला जाता था."
मोदी से कब मिले?
"कल बड़े भैया पहली बार मेरे परिवार से मिले. शायद कुछ लोगों को ग़लतफ़हमी हुई हो, लेकिन बड़े भैया या मैंने कभी नहीं कहा कि मैं कल अपने परिवार से मिला."
जीत के संस्कारधाम स्कूल में प्रधानाचार्य रहे बिमल भावसार से जब पूछा गया कि वह मोदी से कैसे मिले और मोदी जीत की पढ़ाई का खर्च कैसे चुकाते थे, तो वह बोले, "इस बारे में कुछ नहीं जानता पर ट्रस्टियों को पता होगा."
"कल बड़े भैया पहली बार मेरे परिवार से मिले. शायद कुछ लोगों को ग़लतफ़हमी हुई हो, लेकिन बड़े भैया या मैंने कभी नहीं कहा कि मैं कल अपने परिवार से मिला."
जीत के संस्कारधाम स्कूल में प्रधानाचार्य रहे बिमल भावसार से जब पूछा गया कि वह मोदी से कैसे मिले और मोदी जीत की पढ़ाई का खर्च कैसे चुकाते थे, तो वह बोले, "इस बारे में कुछ नहीं जानता पर ट्रस्टियों को पता होगा."
खासमा बिबिसी हिन्दीले के लेखेको थियो त ? यहाँ क्लिक गरेर पनि त्यो समाचार पढन सक्नु हुन्छ ।
आफैसँग ल्याएका जीतबहादुरलाई परिवारसँँग सुम्पेर तस्बिर खिचाउँदै मोदी |
सम्भवतः एउटा ब्यक्तिका बारेमा सबैभन्दा बढी टिवट गरेको मोदीले पहिलो पटक नै हुनु पर्छ, जीतबहादुरका बारेमा मोदीले ५ वटा हिन्दीमा र ३ वटा अंग्रजीमा गरी कुल ८ टिवट गरेका थिए । यस्तो लेखिएको थियो, –
नेपाल की इस यात्रा से मेरी कुछ ब्यक्तिगत भावनायें भी जुडी हुई है.. बहुत बर्ष पहले एक छोटा सा बालक जीतबहादुर, असहाय अवस्थामा मे मुझे मिला, उसे कुछ पता नहीं था । कहाँ जाना है ? क्या करना है ?... और वो किसीको जानता भी नही था.. भाषा भी ठिक से नही समझता था, ईश्वरकी प्रेरण से मैने उसको जीवन के बारेमा चिन्ता शुरु की.. धिरे धिरे उसकी पढाई मे, खेलन ेमे रुची बढने लगी.. वो गुजराती भाषा जानने लगा, कुछ समय पहले उसके माँ–पीताजी भी खोजने मे. सफल हो गया.. यही भी रोचक था... इसलिय सम्भव हो पाया क्योंकी उसको पाँव मे छः उंगलिया है.. मुझे खुसी है कि कल मै स्वयं उन्हे उनका बेटा सौैप सकुंगा ।
अंग्रजीमा पनि उनले टिवट गर्दै यस्तो लेखेका थिए-
On a personal note my Nepal visit is very special. Years ago
I met a child from Nepal, Jeet Bahadur who did not know where he was headed. I
started showing my concern for Jeet Bahadur. Gradually, he took interest in
academics, sports & even learnt Gujarati! Thankfully, we were able to
locate his parents. I am glad that tomorrow the parents would be reunited with
their son.
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