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प्रकाश तिमल्सिनाको ब्लग.......................................... अरु भन्दा केही भिन्न !

Sunday, July 20, 2014

महत्तोले संविधानसभा छाडने रे ! , धम्की कि संवेदनशिलता ?

सद्‍भावना पार्टी अध्यक्ष राजेन्द्र महतोले तराई–मधेसका मुद्दा संविधानसभाले सम्बोधन नगरे त्यहाँबाट बाहिरिनुपर्ने प्रस्ताव अघि सारेका छन्। अध्यक्ष महतोले 'संविधानसभा र मधेसको भावी कार्ययोजना' विषयक अन्तर्क्रियामा लिखित धारणा पेस गर्दै आवश्यक परे संविधानसभा छाड्न पार्टी तयार रहने जनाएका हुन्।
महतोका अनुसार संविधानसभाबाट तराई–मधेसका मुद्दा सम्बोधन हुने सम्भावना एकदमै कम हुँदै गएको छ। 'संविधानसभामा मधेस मुद्दामाथि बेइमानी भए हामी त्यहाँबाट बाहिरिन पछि हट्दैनौं,' महतोको लिखित मन्तव्यमा उल्लेख छ। संविधानसभामा रहेका ५ सभासदमध्ये प्रत्यक्षबाट विजयी एक मात्र सभासद सञ्जय साह जनकपुर बम काण्डमा मुछिएपछि हिरासतमा छन्। साह संसदीय दलका नेता पनि थिए।
अध्यक्ष महतोले सडक संघर्षको कुनै विकल्प अहिले नदेखिएको जनाउँदै तयारी र नेतृत्वका लागि सद्भावनाले मेची–महाकाली अभियान चलाउने घोषणा गरेका छन्। 'सद्भावना पार्टीले मधेसको अधिकारका लागि संघर्षको बाटो लिने फैसला गरिसकेको छ, चाहे त्यो पार्टी एकीकरण गरेर होस् वा एक्लै,' महतोको निष्कर्ष छ, 'मधेसका तमाम मुद्दाको सम्बोधन सडक संघर्षबाट मात्रै हुनसक्छ।'

तराई–मधेसकेन्द्रित तीन पार्टीबीच एकीकरणको प्रसंग उल्लेख गर्र्दै महतोले सद्भावनाले सबैभन्दा बढी लचकता प्रदर्शन गरेको दाबी गरेका छन्। 'हाम्रो पार्टीले यो एकीकरणमा सबैभन्दा बढी प्रयास गरेको हो,' महतोले भनेका छन्, 'आज पनि म यो सबैका सामु भन्छु कि एकीकरणका लागि सबैभन्दा बढी त्याग गर्ने पार्टी सद्भावना हो, बढी त्याग गर्न अझै तयार छ।'
संविधानसभाभित्र रहेका सदभावनासहित महन्थ ठाकुर नेतृत्वको तराई–मधेस लोकतान्त्रिक पार्टी र उपेन्द्र यादव नेतृत्वको मधेसी जनअधिकार फोरम नेपालबीच एकीकरण गर्न प्रयास भइरहे पनि अझै निष्कर्षमा पुग्न नसकेको सन्दर्भमा महतोले उक्त धारणा राखेका हुन्।
समानुपातिक सभासद चयन प्रक्रियामा पार्टीभित्र र बाहिर असन्तुष्टि रहेको महतोले स्वीकार गरेका छन्। उनले त्यो असन्तुष्टि सद्भावनामा मात्रै नभएर अन्य तराई–मधेसकेन्द्रित दलमा पनि रहेको उल्लेख गरेका छन्। 'म यो कुरा नहिकिच्याई भन्छु कि समानुपातिक सभासद चयन गर्दा पार्टीले त्रुटि गर्योख, यसको आजसम्म जति आलोचना भएको छ, उचित समयमा कठोर निर्णय गरेर त्यसको समाधान गरिनेछ।'

राजेन्द्र महत्तोले पेश गरेको राजनीतिक प्रतिवेदनलाई जस्ताको तस्तै तल उल्लेख गरिएको छ

                                            सद्भावना पार्टी की भूमिका का सिंहावलोकने

आदरणीय मधेशी विद्वान बुद्धिजीवी मित्रगण,

सर्वप्रथम आप सभी का हार्दिक स्वागत तथा अभिनन्दन करते हुए आप की गरिमामय उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त करता हू ।

मित्रों, मधेश की बात चाहे जहाँ से शुरु हो हम उन तमाम शहीदो को स्मरण किए बिना नही रह सकते जिन्होने मधेश के अधिकार की खातिर, अपने पहिचान की खातिर अपने प्राणो की आहुति दी है । इसलिए सर्वप्रथम उन तमाम ज्ञात अज्ञात वीर मधेशी शहीदों के प्रति भावभीनी श्रद्धाञ्जली अर्पित करता हूँ ।

दुसरे संविधानसभा चुनाव के बाद, बदली राजनीति परिस्थती मे आखिर मधेशी राजनीतिक दलो की भूमिका क्या होनी चाहिए ? मधेश विरोधी सरकार और मधेश विरोधी संविधान सभा के स्वरुप के वीच आखिर मधेश को राजनीतिक, सामाजिक, साँस्कृतिक और आर्थिक अधिकार कैसे मिलेगा? मधेशी राजनीति की भावी रणनीति क्या होनी चाहिए ? इन सभी मुद्दो पर आज हम आप सभी के विचारो का स्वागत करने को आतुर हैं । लेकिन उससे पहले कुछ दिल की बात कहने की इच्छा हो रही है । मेरा यह व्यक्तिगत मानना है कि हम सभी किसी न किसी रुप मे एक ही परिवार के सदस्य है और अपने परिवार के वीच दिल की बात कह कर दिल पर रहे बोझ को उतारना चाहता हूँ ।

मित्रो, पिछले २२ वर्षो की अनवरत राजनीतिक यात्रा के दौरान जीवन के कई उतार चढाव, आरोह–अवरोह को पार करते हुए आज हम यहाँ खडे है । मुझे यह कहने मे जरा भी संकोच नही है कि इस दौरान जाने अनजाने मे, कभी चाह कर कभी मजबुरी मे कुछ गलतियाँ अवश्य हुई होंगी और पार्टी के तरफ से आज तक हुई उन सभी गलतियो के लिए पार्टी अध्यक्ष होने के नाते उन सभी की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए क्षमा प्रार्थी हूँ ।

एक और बात जिसका उल्लेख किये बिना शायद यह वक्तव्य पुरा नही होगा । इस बार हुए संविधान सभा के निर्वाचन के पश्चात जो समानुपातिक सभासद की चयन की प्रक्रिया हुई उसको लेकर पार्टी के भीतर तथा आम मधेशी जनता तक मे निराशा, हताशा, आक्रोश व अविश्वास का माहौल बना हुआ है । वैसे भी इस प्रक्रिया के कारण सभी मधेशी दलो की यही स्थिती है ।

मित्रो, मुझे यह कहने मे जरा भी संकोच नही है की समानुपातिक सभासद चयन प्रक्रिया मे हमारी पार्टी से त्रुटी हुई है । इसलिए इसको लेकर आजतक जो भी आलोचना हुई उसे सहृदय करते हुए पार्टी अध्यक्ष होने के नाते मै पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं और आप सभी मधेशी बुद्धिजीवी वर्ग को यह बताना चाहताँ हू की इस विषय पर पार्टी के द्वारा सही समय आने पर कठोर निर्णय किया जाएगा ।

मित्रो, आप सभी विद्धतजनो को मधेश का इतिहास बताने की कोई आवश्यकता नही है और ना ही पार्टी के अतित का उल्लेख करने की आवश्यकता है । आप सभी भलीभाँति इस बात को जानते है कि किन विपरीत परिस्थितियो मे सद्भावना पार्टी का गठन हुआ आज हम गर्व के साथ कह सकते है कि श्रद्धेय गजेन्द्र नारायण सिंह के द्वारा दिखाये गए सपनो को साकार करने के लिए उनके पद चिन्हो पर चल रहे हंै । हमे गर्व है की २२ वर्ष पूर्व शुरु हुए नेपाल सद्भावना पार्टी के छिन्नभिन्न होने के बाबजुद बाबा रामजनम तिवारी, स्व.श्यामलाल मिश्र और स्व.रामचन्द्र मिश्र के सपनो को अपना बनाकर उनके बताए रास्तोँ पर चल कर हम अपने आपकोे उनका वारिस बनाने मे सफल रहे हैं ।

मित्रो, यह हमारी नीति और सिद्धान्त तथा हमारे समर्पित कार्यकर्ताओ की ही बदौलत है कि सद्भावना पार्टी आज भी मधेशी मुद्दा और मधेश का पर्याय बना हुआ है । हम इस सच्चाई को नकार नही सकते है कि मधेश के अधिकार के लिए चाहे जितने भी राजनीतिक दल खुल गए हों लेकिन मधेश के मुद्दे का जन्मदाता सद्भावना पार्टी ही है । हमे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हमारे द्वारा उठाए गए संघियता का मुद्दा आज इस देशका राष्ट्रिय मुद्दा बन गया है । हमने कई और भी मुद्दे उठाए थे जो राष्ट्रिय बहस का मुद्दा तो बना लेकिन उसे राष्ट्रिय आवश्यकता बनाने के लिए हमारा सतत् संघर्ष जारी है । मसलन नागरिकता का अधिकार, सेना का समावेशिकरण, सरकार के प्रत्येक अंग का समावेशिकरण, भाषा, संस्कृति का सम्मानजनक स्थान दिलाना ।

मित्रों, हमने समय समय पर मधेश के विभिन्न मुद्दो के लिए आन्दोलन के कई चरण को पार किया है । सरकार मे रहकर संघर्ष, संसद के भीतर संघर्ष, संविधान सभा मे संघर्ष, सडक पर संघर्ष यानी हमने मुद्दे की जीवन्तता के लिए सरकार से सडक तक और संविधान सभा से संसद तक मे संघर्ष को जारी रखा । इस दौरान हमने अनेक झंझावातँो को भी झेला है । हमने पार्टी विभाजन के दंश को भी झेला है । लेकिन उन सब विपरीत परिस्थिती के बाबजुद जनता का विश्वास कायम रखने मे सफल हुए हैँ ।

हमारे बार–बार सत्ता मे जाने को लेकर अनेक प्रश्न चिन्ह खडा किया जाता है । और यह स्वभाविक भी है । लेकिन आप इस बात को नकार भी नही सकते कि सत्ता मे जाने से मधेश मुद्दे पर कोई काम ही नही हुआ । लाखो मधेशी नागरिको के नागरिकता सम्बन्धी समस्या का समाधान होने की बात को आप नकार नही सकते । आशिंक ही सही, सरकारी नौकरीयो मे आरक्षण की व्यवस्था का लागु होने को नजरअन्दाज नही किया जा सकता है । इसके अलावा अधिकारो की सुनिश्चितता के लिए विकेन्द्रिकरण नीति की घोषणा, सभी मातृभाषाओं मे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, संस्कृति के आधार पर पोशाक को मान्यता, मधेश के विभिन्न पर्व त्योहारो पर राष्ट्रिय अवकाश की घोषणा आदि को उपलब्धीमूलक कहा जा सकता है । लेकिन इन सबका अर्थ यह नही है कि सत्ता मे जाने की दलील दी जा रही है क्योकि सत्ता मे बने रहने का बडा खामियाजा भी हमने भुगता है । आप सभी को मालुम ही है कि नेपालगंज घटना के बाद सत्ता मोह ने सद्भावना पार्टी की विश्वसनीयता को कम कर दी है । यदि उस समय तत्कालीन पार्टी नेतृत्व ने कडा कदम उठाया होता और पार्टी के प्रतिनिधि सत्ता मोह छोडकर जनता के बीच गए होते तो पार्टी की यह दुर्दशा कदापि नही होती । तत्कालिन परिस्थिती मे हुए इस ऐतिहासिक भूल के कारण ही सद्भावना पार्टी एक बडे आन्दोलन का नेतृत्व लेने से चूक गयी ।

मित्रो, वर्तमान परिस्थिती मे हमारा यह स्पष्ट मानना है कि मधेश के तमाम मुद्दो का सम्बोधन सडक संघर्ष से ही हो सकता है । लेकिन आज हमारे सामने सवाल यह है कि क्या हमारा समाज इस संघर्ष के लिए तैयार है ? जवाब मिलेगा हाँ तैयार है । लेकिन उस संघर्ष का नेतृत्व कौन लेगा ? यह सवाल भी हमारे सामने है । मधेश की राजनीति करने के लिए दर्जन भर से अधिक दल संविधान सभा चुनाव मे सहभागी हुए थे । लेकिन जनता ने उनमे से कम ही दलो मे अपना विश्वास जताया । मधेशी राजनीति दलो के अपेक्षाकृत जीत हासिल नही हो पाने के पीछे मधेशी दलो का अलग अलग होना बताया गया है । आज भी आम मधेशी जनता से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग भी यही सोचता है कि मधेशी दलो मे एकिकरण का नही होना हार का सबसे बडा कारण है लेकिन इस एकिकरण के नही होने मे सब से अधिक कौन जिम्मेवार है ? और कौन है जो इस एकिकरण के लिए सबसे अधिक त्याग करने को तैयार है । इसका विश्लेषण होना भी आवश्यक है ।

मित्रो, सद्भावना पार्टी इस एकिकरण के लिए शुरु से सबसे अधिक प्रयास करने वाली पार्टी है और मै पूरी जिम्मेवारी के साथ यह भी कहना चाहता हू कि आज भी मधेशी दलो के बीच एकिकरण के लिए सर्वाधिक त्याग करने को तैयार हैं । लेकिन इस एकिकरण के पीछे का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? यह भी समझना होगा । हम यह एकिकरण सिर्फ इसलिए नही कर रहे है कि मधेश मे एक ही पार्टी रहे और वह पार्टी कुछ काम ही नही करे तो वैसे एकिकरण का क्या फायदा ? एकिकरण को मधेश मे एक मजबूत राजनीति शक्ति का निर्माण हो जो मधेश के अधिकार के लिए संघर्ष करने को और हर प्रकार के त्याग करने के लिए तैयार रहे ।

मित्रो, सद्भावना पार्टी ने मधेश के अधिकार के लिए संघर्ष के रास्ते को चुनने का फैसला किया है । चाहे वह एकिकरण के साथ हो या अकेले । हमे पूरा विश्वास है कि हमारे इस संघर्ष मे आप सभी मधेशी विद्वत वर्ग और आम मधेशी जनता का समर्थन, सहयोग और सद्भाव अवश्य मिलेगा । सद्भावना पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते मै आप सभी को विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि पार्टी के तरफ से अतीत मे हुइ गलतियो का सुधार कर अपने सांगठनिक क्षमता की अभिवृद्धि करते हुए आगे बढेंगे । पुर्व मे मेची से लेकर पश्चिम में महाकाली तक मे रहे सद्भावना पार्टी के तमाम समर्पित कार्यकर्ताआें को समेटते हुए आने वाले संघर्ष की तैयारी मे जुटेगें ।

मित्रो, हम इतिहास के पन्नो से शिखते हुए अपने हरेक क्रियाकलाप की आत्मसमीक्षा और आत्मालोचना करते हुए युवाओं को साथ लेकर चलने के अपने संकल्प को दोहराते हैं । संविधान सभा से यदि मधेश मुद्दे पर बेइमानी की गई तो संविधान सभा को छोडने से भी हम पीछे नही हटेंगे । मधेश मैत्री संविधान बनने तक, मधेश को अधिकार सम्पन्न बनाने तक, मधेश की पहचान दिलाने तक, मधेश को आर्थिक उन्नत बनाने तक, समृद्ध मधेश का सपना साकार करवाने तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा ।

  धन्यवाद । जयमातृभूमि ।

                                                                                                             राजेन्द्र महतो
                                                                                             राष्ट्रिय अध्यक्ष, सद्भावना पार्टी

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