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प्रकाश तिमल्सिनाको ब्लग.......................................... अरु भन्दा केही भिन्न !

Friday, June 20, 2014

भारतमै हिन्दी लादन खोज्दा बिरोध हुने, यता भएन भन्दै रुने

नेपालमा संविधान निमार्ण प्रक्रिया जारी छ । मुख्यतः शाषकीय स्वरुप, संघीय संरचना र निर्वाचन प्रणालीसहित अन्य बिषयमा प्रमुख दल बिच बिबाद र मतभेद कायमै छ । त्यसमध्ये, एउटा प्रमुख मुद्धा राष्ट्रिय भाषा नेपालीसहित सँगसँगै हिन्दी पनि हुनु पर्ने माग यथावत नै छ । मुख्यतः तराई मधेस केन्द्रित राजनीतिक दलले हिन्दीलाई पनि राष्ट्रिय भाषाको मान्यता दिनु पर्नेमा जोड गर्दै आएका छन ।
उनीहरु भन्छन, ‘तराई–मधेसमा धेरै भाषा बोलिन्छन, (खस, थारु, अबधी, भोजपुरी, बज्जिका, मैथली, उर्दु आदी इत्यादी) त्यसकारण सबैले बुझने भाषा भनेको हिन्दी हो, हिन्दीलाई सम्पर्क भाषामा विकसित गर्नुपर्छ, अर्थात नेपाली सँगसँगै हिन्दीलाई पनि मान्यता दिनु पर्छ ।’ तर, धेरै जना मुख्यतः खस भाषा बोल्नेहरु तराई मधेस केन्द्रित राजनीतिक दलको सो भाषिक एजेन्डाको बिरोधमा छन र सँगसँगै तराई–मधेसमा रहेका अन्य जात जाती, जो आफनो मौलिक भाषालाई माया गर्छन, उनीहरु पनि बिरोधमा नै छन् (यहाँ क्लिक गर्नुहोस्) । गत संविधानसभामा नराम्रोसँग पराजय भए पछि तराई मधेस केन्द्रित दलले भने सो एजेन्डा बल जोडले उठाएका त छैनन् तर छोडेका पनि छैनन । संविधान निमार्ण प्रक्रिया सँगसँगै त्यो एजेन्डा पुनः उठन सक्छ भन्नेमा कुनै द्धिबिधा छैन ।
धेरैलाई के पनि लाग्छ भने हिन्दी भाषालाई नेपालको संविधानमा संस्थागत गर्नका लागि छिमेकी मुलुक भारतले जोड गरिरहेको छ । भारतले नै तराई मधेस केन्द्रित दलमार्फत सो एजेन्डा संविधानसभामा बहस गराइरहेको छ, भलै यसको ठोस प्रमाण भने नभेटिएला । तराई मधेस केन्द्रित दल मध्ये मुख्यतः उपेन्द्र यादव नेतृत्वको मधेसी जनअधिकार फोरम नेपाल र राजेन्द्र महत्तो नेतृत्वको सदभावना पार्टी हिन्दी भाषालाई नेपालको संविधानमा संस्थागत गर्ने पक्षमा बढी वकालत गर्ने पार्टीमा दरिन्छन् ।
नेपालमा संविधान निमार्ण जारी रहेको अवस्थामा तमिलनाडु, भारतमा भएको एउटा हिन्दी बिरोधी घटनावाट यहाँ पनि धेरै कुरा सिक्न सकिन्छ भन्ने उदेश्यले यो ब्लग लेखिएको हो । बिबिसी हिन्दीको अनलाईनमा उल्लेख भए अनुसार तमिलनाडुका पुर्व मुख्यमन्त्री तथा बिपक्षी दल द्रमुकका प्रमुख एम करुणानिधिले केन्द्र सरकार (गृहमन्त्री राजनाथ सिंह)ले तमिलनाडुमा पनि हिन्दी भाषालाई सम्पर्क भाषा बनाउन तथा त्यहाँको पाठ्यक्रममा समावेश गर्न भनि गरिएको ‘परिपत्र’ (निर्देशन तथा आदेश) को बिरोधमा उत्रिएका छन । करुणानीधि तीनै नेता हुन, जसले ६० को दशकमा तमिलनाडुमा हिन्दी भाषा लादने केन्द्र सरकारको ‘अप्रिय’ निर्णयको  बिरोधमा अभियान नै चलाएर राजनीतिमा स्थापित भएका थिए ।
भारतीय जनता पार्टीको सरकार बने लगत्तै पुनः सुरु भएको हिन्दी भाषा ‘लादने’ सो प्रयासको बिरुद्ध करुणानिधीले प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीलाई ४ पृष्ठ लामो पत्र लेखेर सो निर्णय फिर्ता लिन आग्रह गरेका छन । उनको चेतावनी छ, ‘हामी तमिल नै बोल्छौ, तमिलमा नै हाम्रो प्रेम छ, एकता छ, अब हिन्दी भाषा लादेर हामीलाई भाषिक औपनेबेशिक नबनाईयोस र हामी तमिलमा बिभाजन नल्याइयोस ।’
भारतीय संस्थापन पक्षको इच्छा अनुसार तराई मधेस राजनीतिक दलले हिन्दी भाषालाई दोस्रो दर्जा दिदै राष्ट्रिय भाषा बनाउनु पर्नेमा जोड गरेका हुन भन्ने आरोप लागिरहेको बेला तमिलनाडुको यो घटना सबैका लागि पाठ हुन सक्छ किनकी हामी नयाँ संविधान बनाउँदैछौ । जुन देशले आफनै देशको राज्यमा हिन्दीलाई संस्थागत गर्न सक्दैन, त्यो देशले अरुमा ‘हस्तक्षेप’ गर्न पनि सुहाउँदैन, न त त्यो नैतिक बल नै हुन्छ । तसर्थ, भारतीय संस्थापन पक्षको चाहाना अनुसार हिन्दीलाई संस्थागत गर्न खोजेको आरोप तराई मधेस केन्द्रित दललाई लागिरहेको बेला तमिलनाडुको यो घटनावाट शिक्षा लिर्दै नेपाल (तराई–मधेस) मा बोलिने मौलिक भाषालाई सम्पर्क भाषा बनाउन जोड गर्नु तराई मधेस केन्द्रित दललाई पनि हितकर हुनेछ । त्यसले आफनो मौलिकता पनि झल्काउँछ, भाषा प्रतिको माया पनि बढाउँछ, भाषाको संरक्षण र उत्थान पनि सहयोग पु¥याउँछ ।

बिबिसी अनलाइनवाट उद्यृत समाचार

तमिलनाडु में हिंदी पर फिर तकरार

विरोधाभास काफ़ी गहरा है. एक तरफ एक क्षेत्रीय नेता ने भाषा के मुद्दे पर केंद्र सरकार को पिछले पांव पर धकेल दिया है, तो दूसरी तरफ़ अदालत ने राज्य सरकार से याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें स्कूली स्तर पर तमिल के अलावा दूसरी भाषाओं को पढ़ाए जाने का अनुरोध किया गया है. दोनों मामले दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु से जुड़े हैं.
तमिलनाडु के पू्र्व मुख्यमंत्री और प्रमुख विपक्षी दल द्रमुक के सुप्रीमो क्लिक करें एम करुणानिधि ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और गृह राज्यमंत्री किरण रिजूजू को भाषा के मुद्दे पर आड़े हाथों लिया है.
गृह मंत्रालय ने नौकरशाहों को कथित तौर पर निर्देश दिया था कि वे सोशल मीडिया जैसे ट्विटर और फ़ेसबुक पर हिंदी को प्राथमिकता दें.
सफ़ाई
मगर करुणानिधि की आलोचना के बाद दोनों मंत्रियों ने सफ़ाई देते हुए कहा कि सभी भारतीय भाषाएं अहम हैं.
प्रधानमंत्री क्लिक करें नरेंद्र मोदी को लिखे गए करुणानिधि के चार पन्नों के पत्र के हवाले से एक अंग्रेज़ी अख़बार ने लिखा, "हिंदी को प्राथमिकता देना ग़ैर हिंदीभाषी लोगों में मतभेद पैदा करने और उन्हें दूसरी श्रेणी का नागरिक बनाने की दिशा में पहले क़दम के तौर पर देखा जाएगा."
करुणानिधि ने 60 के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था और इसके सहारे सत्ता हासिल की थी. उन्होंने कहा, "ऐसे समय जब सकारात्मक प्रयासों से सभी वर्गों की आकांक्षाओं को पूरा करने की ज़रूरत है, संवाद की भाषा में दिलचस्पी लेना विभाजनकारी होगा."
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा, "हम प्रधानमंत्री मोदी से अपील करते हैं कि वह देश की आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास पर ध्यान दें."
प्रासंगिक
तमिल लेखक और राजनीतिक विश्लेषक ज्ञानी शंकरन ने बीबीसी हिंदी से कहा, "उन्होंने दक्षिण भारत के लिए एक प्रासंगिक सवाल उठाया है. यह चिंता का विषय है. करुणानिधि जानते हैं कि किस समय क्या मुद्दा उठाना है ताकि वह राज्य में अपनी पार्टी को पुनर्जीवित कर सकें. लेकिन जो मुद्दा वह उठा रहे हैं, वह प्रासंगिक है."
"हम तमिल पढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हमारा दृष्टिकोण यह है कि हिंदी बोलने वाले बच्चों भी तमिल सीख सकें और तमिल बोलने वाले बच्चे हिंदी"
शंकरन ने कहा, "इस बारे में संविधान स्पष्ट है. क्लिक करें हिंदी और अंग्रेज़ी को संवाद के लिए इस्तेमाल किया जाना है. अब मोदी सरकार अंग्रेज़ी को किनारे करने की कोशिश कर रही है. संविधान की आठवीं अनुसूची में अंग्रेज़ी को वैकल्पिक भाषा के रूप में उल्लिखित किया गया है."
करुणानिधि का बयान आने के तुरंत बाद गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने साफ़ किया कि 27 मई को नौकरशाहों को ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया था.
चेन्नई में डेक्कन क्रॉनिकल के रेज़िडेंट एडिटर भगवान सिंह ने कहा, "वे दो दिन तक चुप क्यों रहे? ये निर्देश दिल्ली से छपने वाले एक प्रमुख अख़बार में प्रकाशित हुआ न कि किसी ज़िलास्तरीय छोटे अख़बार में."
भावनात्मक मुद्दा
तमिलनाडु में भाषा एक भावनात्मक मुद्दा है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों से लोगों के क्लिक करें तमिलनाडु में आने के बाद से शैक्षिणिक संस्थाओं, अभिभावकों और छात्रों का परिदृश्य बदल गया है.
अब इस मुद्दे का दूसरा पहलू देखिए.
एसोसिएशन ऑफ़ मेट्रिकुलेशन स्कूल्स एंड मैनेजमेंट्स इन तमिलनाडु एंड पुद्दुचेरी की एक याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है.
याचिका में मांग की गई है कि स्कूलों में केवल तमिल न थोपी जाए और अन्य भाषाओं को पढ़ाने की इजाज़त दी जाए.
एसोसिएशन के वकील आर कन्नन ने बीबीसी हिंदी से कहा, "दूसरे राज्यों के कई छात्र तमिलनाडु में हैं. वे दसवीं कक्षा तक केवल तमिल माध्यम में पढ़ाई के लिए मजबूर हैं."
उन्होंने कहा, "सरकार 2006 में पारित एक विधेयक को थोपने की कोशिश कर रही है. इस विधेयक के मुताबिक़ छात्र केवल तमिल माध्यम में ही पढ़ाई कर सकते हैं. पढ़ाई के माध्यम के चयन का अधिकार अभिभावकों और छात्रों को है. यहां तक कि दूसरी भाषा के चयन में भी अभिभावकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे इसका फ़ैसला करें कि उनके बच्चे किस भाषा में पढ़ें."
शिक्षा का माध्यम
कन्नन ने कहा, "हम तमिल पढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हमारा दृष्टिकोण यह है कि हिंदी बोलने वाले बच्चे भी तमिल सीखें और तमिल बोलने वाले बच्चे हिंदी. तमिल बोलने वाले कई छात्रों ने स्कूलों से कहा है कि वे हिंदी सीखना चाहते हैं. यह उनका अधिकार है और उन्हें इससे वंचित नहीं किया जा सकता."
कन्नन ने उच्चतम न्यायालय के एक हालिया फ़ैसले का हवाला दिया, जिसमें कर्नाटक सरकार से साफ़ शब्दों में कहा गया है कि शिक्षा के माध्यम का चयन करना अभिभावकों और छात्रों का अधिकार है और राज्य को नागरिकों पर अपनी पसंद नहीं थोपनी चाहिए.
तो क्या भाषा के मुद्दे का कोई समाधान है?
शंकरन कहते हैं, "आप किसी हिंदीभाषी छात्र को उसकी इच्छा के विरुद्ध तमिल सीखने के लिए मजबूर नहीं कर सकते और न तमिल भाषी बच्चे को हिंदी पढ़ने के लिए. अगर अंग्रेज़ी एक अतिरिक्त भाषा है, तो इसने एक संतुलन कायम किया है. हिंदी भी तमिल, बांग्ला, मलयालम, कन्नड़ और क्लिक करें ओड़ि़या की तरह एक क्षेत्रीय भाषा है. अंग्रेज़ी संवाद की भाषा होनी चाहिए.''


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